मानवाधिकार के नाम पर देश की संप्रभुता पर हस्तक्षेप न हो: एस जयशंकर

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विदेश मंत्री एस जयशंकर
विदेश मंत्री एस जयशंकर

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने मंगलवार को कहा कि दुनिया में मानवाधिकारों के संरक्षण के संबंध में भेदभाव रहित पारदर्शिता बरती जानी चाहिए। मानवाधिकारों के नाम पर किसी देश के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए।

जयशंकर ने जिनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के 46वें सत्र को वीडियो लिंक के जरिए संबोधित कर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि भारत और उसकी लोकतांत्रिक प्रणाली मानवाधिकारों के प्रति पूरी तरह समर्पित है। हमारा मानना है कि मानवाधिकारों को लागू करने और इनके हनन के संबंध में एक न्याय संगत और तथ्यों पर आधारित रवैया अपनाया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि मानव अधिकारों के मामले में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए तथा देशों के आंतरिक मामले और संप्रभुता का सम्मान किया जाना चाहिए। विदेश मंत्री ने आतंकवाद को मानवाधिकारों के लिए सबसे बड़ा खतरा बताते हुए कहा कि आतंकवाद मानवता के खिलाफ अपराध है। यह जीवन के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।

उन्होंने कहा कि भारत हमेशा ही आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में आगे रहा है। आतंकवाद को किसी भी आधार पर न्याय संगत नहीं ठहराया जा सकता। आतंकवाद में संलग्न और उसका शिकार बनने वालों को एक ही पलड़े पर नहीं लाया जाना चाहिए।

विदेश मंत्री जयशंकर ने भारत द्वारा पिछले महीने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के लिए पेश की गई आठ सूत्रीय कार्य-योजना का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि भारत सुरक्षा परिषद के अन्य सदस्यों तथा देशों के साथ मिलकर इस कार्य योजना को लागू करने के लिए हर संभव कोशिश करेगा।

भारत की ‘वसुधैव कुटुंबकम’ सोच का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि भारत ने कोरोना वायरस महामारी का मुकाबला करने के लिए दुनिया के 150 से अधिक देशों को दवाइयां और चिकित्सा उपकरण मुहैया कराए हैं। भारत अपनी वैक्सीन उत्पादन क्षमता के जरिए दुनिया के सभी देशों तक सस्ते मूल्य पर वैक्सीन उपलब्ध कराएगा। दुनिया की वैक्सीन उत्पादक महाशक्ति के रूप में भारत बांग्लादेश से लेकर ब्राजील, मोरक्को से फिजी तक दुनिया के 70 से अधिक देशों को वैक्सीन उपलब्ध करा रहा है।

विदेश मंत्री ने कहा कि भारत एक सर्व समावेशी और बहुलतावादी समाज है, जहां जीवंत लोकतंत्र है। हमारे संविधान में मानवाधिकारों को मौलिक अधिकार मानते हुए लोगों को नागरिक और राजनीतिक अधिकार दिए गए हैं। देश की संसद में प्रगतिशील कानून बनाए जाते हैं तथा न्यायपालिका इसी तरह इनकी व्यवस्था करती है। पूरी प्रक्रिया में नागरिकों और नागरिक समूहों की सक्रिय भागीदारी रहती है।