अफगानिस्तान में तालिबान का राज आने के बाद किसी दूसरे देश के खिलाफ वहां की जमीन का इस्तेमाल रोकने के लिए भारत की अगुवाई में एक प्रस्ताव लाया गया। यूएनएससी में यह प्रस्ताव पारित हो गया। हालांकि इसे प्रस्ताव से रूस और चीन अलग रहे।
भारत के कट्टर प्रतिद्वंद्वी चीन ने कहा कि आखिर इस प्रस्ताव की जरूरत क्या है और यदि लाना भी है तो फिर इतनी जल्दी क्यों है। यही नहीं इस दौरान चीन ने कहा कि वैश्विक समुदाय को तालिबान से बात करनी चाहिए और उन्हें गाइड करना चाहिए।
वहीं रूस ने इस मामले में कहा कि अफगानिस्तान से हाई स्किल और प्रोफेशनल अफगानियों को निकालेंगे तो अफगानिस्तान सामाजिक और आर्थिक रूप से बेहद कमजोर हो जाएगा और विकास नहीं कर पाएगा। इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक संयुक्त राष्ट्र से पारित प्रस्ताव में चीन इस्लामिक स्टेट के अलावा ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट का नाम भी शामिल कराना चाहता था।
बता दें कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक के दौरान भारत ने जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठनों को खत्म करने की जरूरत बताई है। हालांकि सुरक्षा परिषद की बैठक के दौरान रूस और चीन का रवैया अलग था।
बता दें कि तालिबान के जिस राज से पूरी दुनिया आशंकित है, उसे दोनों ही देश खुला समर्थन कर रहे हैं। प्रस्ताव को लेकर रूस ने कहा कि इस प्रस्ताव से अफगानिस्तान पर बुरा प्रभाव पड़ेगा और वहां की सरकार तक संसाधनों की पहुंच नहीं होगी। इससे अफगानिस्तान का विकास प्रभावित हो सकता है।