राजा महेंद्र प्रताप सिंह का इटावा से भी रहा है गहरा नाता, कभी अर्जुन सिंह भदौरिया के आवास पर भी आए थे

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राजा महेंद्र प्रताप सिंह और अर्जुन सिंह भदौरिया

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 14 सितंबर को अलीगढ़ में राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम पर उनकी स्मृति में एक विश्वविद्यालय की नींव रखी। इस यूनिवर्सिटी का शिलान्यास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मौजूदगी में किया। बता दें कि योगी आदित्यनाथ ने 2019 में अलीगढ़ में राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम पर एक नया विश्वविद्यालय स्थापित करने का भरोसा दिया था।

इस मौके पर पीएम मोदी ने कहा, ‘हमारी आज़ादी के आंदोलन में कई महान व्यक्तित्वों ने अपना सबकुछ खपा दिया। लेकिन यह देश का दुर्भाग्य रहा है कि आज़ादी के बाद ऐसे राष्ट्र नायक और नायिकाओं को अगली पीढियों को परिचित ही नहीं कराया गया।’ इस मौके पर पीएम मोदी ने राजा महेंद्र प्रताप सिंह के योगदान की उपेक्षा करने का भी जिक्र किया।

अलीगढ़ में राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम पर विश्वविद्यालय स्थापित करने के निर्णय पर बसपा नेता सुधींद्र भदौरिया ने खुशी जाहिर की और अपने पिता अर्जुन सिंह भदौरिया के साथ उनके रिश्तों के बारे में बात की। उन्होंने एक ट्वीट के माध्यम से कहा, ‘राजा महेंद्र प्रताप जी,एक महान क्रांतिकारी थे। जिनका सभी सम्मान करते थे। आज़ादी की लड़ाई में मरे पिता अर्जुन सिंह भदौरिया का चम्बल घाटी में भी बड़ा नाम था। इनमें परस्पर प्रेमभाव व सम्मान था। तस्वीर में बोलते हुए मेरे पिता अर्जुनसिंह भदौरिया,राजा महेंद्र प्रताप जी व हाफ़िज़ मोहमद इब्राहिम।’

इटावा से भी रहा गहरा नाता

राजा महेंद्र प्रताप सिंह का नाता इटावा से बहुत ही गहरा रहा है। 1957 में मथुरा से राजा साहेब और इटावा से अर्जुन सिंह भदौरिया सांसद निर्वाचित हुए। 1960 में लखनऊ जाते समय कमांडर भदौरिया के इटावा स्थित सराय से उनके आवास पर आए थे। इस बात का सबूत देते हैं ‘नींव के पत्थर’ नामक उस पुस्तक की तस्वीरें जिसमें अर्जुन सिंह भदौरिया और राजा महेंद्र प्रताप एक साथ दिखाई देते हैं।

महेंद्र प्रताप सिंह

1948 में निर्वासन समाप्त होने के बाद जब राजा महेंद्र सिंह भारत आए तो लखनऊ में उनका भव्य स्वागत किया गया। इस स्वागत समारोह में कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया भी उनके साथ मौजूद थे।

कौन थे महेंद्र प्रताप सिंह

महेंद्र प्रताप सिंह का जन्म 1 दिसंबर 1886 को एक जाट परिवार में हुआ था। वे उस वक्त मुरसान रियासत के शासक थे। यह रियासत वर्तमान उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में है। उन्होंने 1 दिसंबर 1915 में काबुल से भारत के लिए अस्थाई सरकार की घोषणा की और खुद को राष्ट्रपति घोषित किया था।

बाद में वे 1920 से 1946 के बीच विदेशों में भ्रमण करते रहे और विश्व मैत्री संघ की स्थापना की। 1946 में राजा महेंद्र प्रताप भारत लौटे। राजा महेंद्र प्रताप सिंह की देशभक्ति और उन्नत विचार की सराहना महात्मा गांधी ने भी की थी।

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी में ऊर्दू में लिखी एक किताब में इस बात का जिक्र किया गया है कि महात्मा गांधी ने राजा महेंद्र प्रताप के बारे में कहा था, ‘राजा महेंद्र प्रताप के लिए 1915 में ही मेरे हृदय में आदर पैदा हो गया था। उससे पहले भी उनकी ख्याति का हाल अफ़्रीका में मेरे पास आ गया था। उनका पत्र व्यवहार मुझसे होता रहा है जिससे मैं उन्हें अच्छी तरह से जान सका हूं। उनका त्याग और देशभक्ति सराहनीय है।’

1957 में मथुरा से चुनाव जीते

भारत लौटने के बाद राजा महेंद्र प्रताप 1957 में मथुरा से निर्दलीय चुनाव लड़े और जीतकर संसद पहुंचे। इस चुनाव की सबसे खास बात यह थी कि इस चुनाव में जनसंघ के उम्मीदवार के तौर पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी चुनाव मैदान में थे।