दुनिया से विदा होते-होते गुड़िया ने दी पांच को नई जिंदगी, बनी सबसे छोटी उम्र की डोनर

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शाम सात बजे पेशे से शिक्षिका बबिता स्कूल से घर आकर बैठी ही थीं कि कुछ ऐसा हो गया कि पूरे परिवार का दिल बैठ गया। उनकी 20 महीने की बच्ची ग्रिल पर चढ़ने की कोशिश में नीचे गिर गई। बच्ची के पिता आशीष और माँ बबिता तत्काल ही बच्ची को पास के बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर अस्पताल ले गए। डॉक्टरों ने प्राथमिक इलाज के बाद जो कुछ कहा वह बेहद गम्भीर और डराने वाला था।

जाँच के बाद डॉक्टरों ने कहा कि बच्ची के सिर में गम्भीर चोटें आई हैं, इसलिए इसका किसी बड़े अस्पताल में इलाज जरूरी है। आशीष और बबिता अपनी 20 माह की बच्ची को सर गंगाराम अस्पताल ले गए। बच्ची को एडमिट कर लिया गया। डॉक्टरों ने बताया कि बच्ची की स्थिति नाजुक है लेकिन लड़ेंगे।

9 तारीख को सुबह अस्पताल से एक ऐसी खबर आई जिससे आशीष के होश उड़ गए। अस्पताल के डॉक्टरों ने बताया कि बच्ची का ब्रेन पूरी तरह निष्क्रिय हो गया है। ऐसे में बच्ची के स्वस्थ होने की संभावना पूरी तरह खत्म हो गई है।
आशीष और बबिता की उम्मीदें अब पूरी तरह टूट चुकी थी। वे हताश और निराश होकर इधर-उधर देखने लगे। बेसुध आशीष ने बड़े भारी मन से पत्नी को ढांढ़स बंधाया कि अस्पताल में वे अपनों को खोने वाले अकेले नहीं हैं। न जाने कितने लोग हर दिन अपनों को खो रहे हैं।

अस्पताल में भर्ती अन्य बच्चों और उनके माता-पिता के कारूणिक विलाप को देखकर आशीष ने तय किया कि वे अपनी बच्ची का अंगदान करके जरूरतमंद बच्चों को जिंदगी दे सकते हैं। इससे न सिर्फ किसी बच्चे को जिंदगी मिलेगी अपितु उनकी बेटी भी किसी न किसी रूप में इस दुनिया में जिंदा रहेगी।

आशीष और बबिता ने अस्पताल प्रशासन से सम्पर्क कर आवश्यक प्रक्रिया का पालन किया। 20 माह की बच्ची का मरणोपरान्त हृदय, लीवर, किडनी और दोनों कार्डिया सर गंगाराम अस्पताल ने 5 रोगियों में प्रत्यापित किया।

 

एक निजी कम्पनी में काम करने वाले आशीष और शिक्षिका बबिता की 20 माह की बेटी अब सबसे कम उम्र की डोनर बन गई। आशीष और बबिता समाज के लिए एक उदाहरण बन गए हैं। अपने दु:खों पर काबू पाकर अपनी बेटी का अंगदान करने का फैसला लेकर इस दम्पति ने अद्भुत कार्य किया है।

पिता आशीष कुमार के अनुसार, ‘हमने अस्पताल में रहते हुए कई ऐसे मरीज देखे जिन्हें अंगों की सख्त आवश्यकता है। हालांकि हम अपनी धनिष्ठा को खो चुके हैं, लेकिन हमने सोचा कि अंग दान से उसके अंग न सिर्फ मरीजों में जिन्दा रहेंगे बल्कि उनकी जान बचाने में भी मददगार सिद्ध होंगे।’

डॉ. डी. एस. राणा, चेयरमैन (बोर्ड ऑफ मैनेजमेंट), सर गंगा राम अस्पताल के अनुसार, ‘परिवार का यह नेक कार्य वास्तव में प्रशंसनीय है और इसे दूसरों को प्रेरित करना चाहिए। भारत में अंगदान 0.26 प्रति मिलियन की दर से दुनिया में सबसे कम है। अंगों की कमी के कारण हर साल भारत में औसतन 5 लाख लोगों की मौत हो जाती है।