बौद्धिक क्षत्रियों के जरिए गुलामी की मानसिकता से निपटने की जरूरत है – मोहन भागवत

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There is a need to deal with the mentality of slavery - Mohan Bhagwat

नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि गुलामी की मानसिकता वाली बेड़ियों से घिरे समाज के साथ ही विश्व को भारत का परिचय भारत के ही नजरिये से कराने के लिए ‘बौद्धिक क्षत्रियों’ की जरूरत है। उन्होंने यह बातें कांस्टीट्यूशन क्लब में सभ्यता अध्ययन केंद्र की पुस्तक ‘ऐतिहासिक कालगणना-एक भारतीय विवेचन’ पुस्तक के विमोचन अवसर पर कही।

उन्होंने कहा कि अबतक इस दिशा में जिसने भी दुस्साहस किया, उसे हाशिये पर डालने का कुत्सित प्रयास हुआ है। जरूरी नहीं कि ये ‘बौद्धिक क्षत्रीय’ संघ या विचार परिवार से ही निकलें, वह कहीं का भी हो। वह भारत का पक्ष लेकर लड़ने वाला हो। वो भारत को उसी के नजर से समझे तथा उसकी परिभाषा में समझाए।

मोहन भागवत ने कहा कि यह परिभाषा वैश्विक है। सारे विश्व के लिए कल्याणकारी है। इसे विश्व के अनुभवों में ला देने की क्षमता रखने वाले बौद्धिक क्षत्रीय चाहिए। विदेशी आक्रमणकारियों ने हमारी एकता और धार्मिक आस्था के केंद्रों को तोड़ा। हमारी प्रमाण मिमांसाओं को दकियानुसी कहा। हमारी हजारों सालों की शिक्षा और अर्थव्यवस्था को ध्वस्त किया और अपनी व्यवस्था को थोपा।

हम सेवक की जगह मालिक बनने की नहीं सोचते

मोहन भागवत ने कहा कि हम सेवक की जगह मालिक बनने की नहीं सोचते हैं। इसलिए प्रमाण के बाद भी अबतक आर्य आक्रमण के उनके सिद्धांत को स्वीकार कर रहे हैं। हमें स्मृति लोप हुआ है और यह तभी जाएगा जब आंखों पर पड़ा विदेशी प्रभाव का ये पर्दा हटेगा और भ्रम दूर होगा। हम अपने मूल से सुपरिचित हो। इसके लिए शिक्षा पद्धति में बदलाव लाना होगा। हमें अपना प्रबोधन करना होगा। पूरा ज्ञान प्राप्त करते हुए आत्म साक्षात्कार करना होगा।

उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भर भारत अगर खड़ा करना है तो अपनी आत्मा को पहचानना होगा कि हम क्या हैं? प्रतिभा के साथ पूर्वजों का ज्ञान हमारे पास है। हमें इसका ठीक से स्मरण करना होगा। अपनी आंखों से खुद को देखना होगा। हजारों सालों से हमारी बातें स्थिर हैं। अनुभूति और प्रमाण दोनों इसके पक्ष में है। हमारा तरीका स्वर्ण है। हमें जैविक खेती विरासत में मिली है। किसान वैज्ञानिक और खेत प्रयोगशाला है। जरूरत है कि तकनीकी का भारतीय स्वरूप में इस्तेमाल कर कृषि को लाभकारी बनाएं।

पुस्तक पर प्रकाश डालते हुए लेखक रविशंकर ने कहा कि हम अपने देश की समस्या और उसके निवारण के तरीके को वैश्विक नजरिये से देखते हैं, जबकि इसे भारतीय नजरिये से देखते हुए समाधान निकालने की आवश्यकता है। हमारी सभ्यता को 15-16 हजार सालों में समेट दिया जाता है जबकि जिन्होंने ग्रंथों का अध्ययन किया है, उन्हें पता है कि भारत का इतिहास एक अरब साल से भी अधिक पुराना है। इसको ही आगे बढ़ाने के लिए इस दिशा मेें पुस्तक के माध्यम से प्रमाणित कोशिश हुई है।