प्रधानमंत्री आवास को मोदी महल कहने पर भड़के केन्द्रीय मंत्री पुरी, आत्मनिरीक्षण करें कांग्रेस

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हरदीप सिंह पुरी

नई दिल्ली। केन्द्रीय आवास एवं शहरी विकास मामलों के मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने सेंट्रल विस्टा के तहत बनने वाले प्रधानमंत्री कार्यालय को कांग्रेस नेताओं द्वारा ‘मोदी महल’ कहे जाने पर कड़ी आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि प्रधानमंत्री आवास एक संस्थागत ढांचा होता है और यह किसी व्यक्ति नहीं बल्कि जनता का होता है।

चरणबद्ध ट्वीट कर हरदीप सिंह पुरी ने पूर्व प्रधानमंत्री रहे कांग्रेस नेताओं के आवासों को स्मारक बनाए जाने सहित कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के वर्तमान आवास 10 जनपथ को लेकर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि अब कांग्रेस का इकोसिस्टम सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट में भारत के प्रधानमंत्री के लिए प्रस्तावित आवास (जिस पर अभी कोई फैसला नहीं हुआ है) को बेशर्मी से ‘मोदी महल’ कह रहा है। क्या यही वह स्तर है जिस पर वे गिरना चाहते हैं? क्या वे भविष्य में इस नाम को पुकारना, अपना कॉलिंग कार्ड बनाना चाहते हैं?

उल्लेखनीय है कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी व अन्य नेता सेंट्रल विस्टा को लेकर अपनी आपत्ति लगातार जता रहे हैं। उनका कहना है कि कोरोना महामारी के कालखंड में यह निर्माण कार्य सही नहीं है। इसी सेंट्रल विस्टा के तहत नया प्रधानमंत्री कार्यालय भी बनाया जा रहा जिसको लेकर पार्टी नेता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर निशाना साध रहे हैं।

पुरी ने कहा कि आरोप लगाने से पहले कांग्रेस नेताओं को आत्मनिरीक्षण करना चाहिए। पं नेहरु के तीन मूर्ति भवन आवास और इंदिरा गांधी के एक सफदरजंग रोड़ स्थित आवास को उनके निधन के बाद स्मारक बना दिया गया। वहीं राजीव गांधी और उसके बाद के प्रधानमंत्री 7 रेस कोर्स रोड (अब लोककल्याण मार्ग) पर रह रहे हैं। इन्हें कभी गांधी विला या मनमोहन महल नहीं कहा गया।

उन्होंने कहा, “जिस घर में देश के प्रधानमंत्री रहते हैं, वह एक संस्थागत ढांचा होता है। यह भारत के लोगों का है, किसी व्यक्ति का नहीं। यह कार्यालय शाश्वतता और गरिमा का प्रतीक है।”

केन्द्रीय मंत्री ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद केएम मार्ग पर रहे। उनके परिवार ने उनके निधन के बाद तुरंत वह आवास खाली कर दिया। वहीं दूसरी ओर सोनिया गांधी 10 जनपथ पर विशाल आवास पर कब्जा करे हुए हैं, इसे कभी ‘कासा गांधी’ नहीं कहा गया।