काठमांडू। अल्पमत में आने के बाद प्रधानमंत्री पद से ओली को इस्तीफा देना पड़ा था। एक बार फिर से नेपाल के पीएम बनने वाले केपी शर्मा ओली से विवादों से नाता टूटने का नाम ही नहीं ले रहा है। हाल ही में फिर से प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने वाले ओली इस बार शपथ ग्रहण के दौरान राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी द्वारा बोले वाक्य को न दोहराकर राष्ट्रपति पद की गरिमा को आघात पहुंचाया है।
इसको लेकर ओली के खिलाफ याचिकाओं की बाढ़ सी आ गई है। सुप्रीम कोर्ट में कई लोगों की ओर से दायर याचिका में ओली को दोबारा पीएम पद की शपथ लेने के आदेश देने की मांग की गई है। राष्ट्रपति भंडारी ने शुक्रवार को ओली को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई।
पद और गोपनीयता की शपथ लेते हुए ओली ने ईश्वर, देश और लोगों को साक्षी मानकर शपथ लेने के बजाय केवल देश और लोगों को साक्षी मानकर शपथ ली। जबकि राष्ट्रपति ने संविधान में निहित भाषा के अनुसार ईश्वर, देश और लोगों को साक्षी मानकर पद और गोपनीयता की शपथ लेने वाला वाक्य बोला था। नियम और परंपरा के अनुसार ओली को यही वाक्य दोहराना था, लेकिन वैसा उन्होंने नहीं किया।
इसके बाद उनके इस आचरण की कड़ी निंदा के साथ ही इसके खिलाफ याचिकाओं का दौर शुरू हो गया है। सभी याचिकाओं में कहा गया है कि ओली द्वारा शुक्रवार को ली गई शपथ अवैधानिक है। इसलिए उन्हें दोबारा शपथ लेने के लिए आदेश दिया जाए।
याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि शपथ ग्रहण के दौरान राष्ट्रपति द्वारा उसी वाक्य को दोबारा बोले जाने पर उसे सही रूप में दोहराने की जगह ओली ने कह दिया- इसकी कोई जरूरत नहीं है। ऐसा कहकर ओली ने राष्ट्रपति पद की गरिमा को आघात पहुंचाया है। इसलिए ओली के खिलाफ कार्रवाई जरूरी है।