आज़ादी का अमृत महोत्सव: रक्षामंत्री ने कहा – आने वाले समय में एक मजबूत भारत का निर्माण करेंगे

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आज़ादी का अमृत महोत्सव

नई दिल्ली। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शुक्रवार को ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ की शुरुआत कीष इस मौके पर रक्षा मंत्री ने भारतीय सेना की टीम को पर्वतीय अभियान को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। इस मौके पर रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि केवल देशवासी ही नहीं, बल्कि जल, थल, नभ, पहाड़, पठार भी हमारे साथ मनाएंगे। अपने सामने इतिहास बनते देखना सौभाग्य की बात होती है। इतिहास का हिस्सा बनना उससे भी बड़े सौभाग्य की बात होती है।

राजनाथ सिंह ने कहा कि हमारा यह परम सौभाग्य है कि हम आजादी के ‘अमृत-महोत्सव’ रूपी इतिहास को न केवल बनते देख रहे हैं, बल्कि इसका हिस्सा भी बन रहे हैं। उन्होंने कहा कि हम भारत को ऐसा शक्तिशाली बनाना चाहते हैं जो दूसरे पर हमला नहीं करना चाहता लेकिन हर चुनौती का मुंहतोड़ जवाब देने में पूरी तरह सक्षम है। आने वाले समय में हम एक और मजबूत भारत का निर्माण करेंगे।

इस मौके पर उनके साथ सैन्य बलों के प्रमुख सीडीएस जनरल बिपिन रावत और सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे भी मौजूद रहे। आम नागरिकों के बीच गर्व और विश्वास की भावना पैदा करने के लिए भारतीय सेना की यह टीमें ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ मनाने के लिए 75 पर्वतीय दर्रों को पार करेंगी। इनमें लद्दाख क्षेत्र में ससेरला दर्रा, कारगिल क्षेत्र में स्टेकपोचन दर्रा, सतोपंथ, हर्षिल, उत्तराखंड, फिम करनाला, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश के तवांग क्षेत्र में प्वाइंट 4493 शामिल हैं।

रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि पहले हमारे वीरों, क्रांतिकारियों को पहाड़ों में जाकर शरण लेनी पड़ती थी लेकिन आज हम उन्हीं पहाड़ों पर ‘पर्वत अभियान’ चलाने जा रहे हैं। 75 साल पहले स्वतंत्रता सेनानियों को द्वीपों पर भेज दिया जाता था लेकिन आज उन्हीं द्वीपों पर सैकड़ों से अधिक तिरंगे फहराकर हम आजादी का जश्न मना रहे हैं। जब ऐतिहासिक दांडी मार्च की वर्षगांठ के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘अमृत महोत्सव‘ की शुरुआत की थी तो उन्होंने देश के सामने एक तस्वीर खींची थी जिसमें उन्होंने यह स्पष्ट किया था यह अमृत महोत्सव कैसे होना चाहिए।

उन्होंने कहा कि ‘अमृत महोत्सव’ भारत के लिए कोई नई या आधुनिक भावना नहीं है। देश की आजादी के संघर्ष का भी ‘गौरवशाली इतिहास‘ है। हमारी सैन्य परम्परा अंग्रेजों के आने से सैकड़ों साल पहले भी थी। चाणक्य ने अपनी पुस्तक ‘अर्थशास्त्र‘ में विस्तार से सैन्य रणनीति और राज्य की सुरक्षा में सेना के महत्व की चर्चा की है। देश के लिए मर मिटने का भाव हमारे देश की सैन्य और सांस्कृतिक परम्परा है।

उन्होंने कहा कि ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादापि गरीयसी‘ का विचार इसी देश से निकला है। यह विचार सिन्धु के उस छोर पर दो हजार साल पहले भी था और 2020 में सिन्धु के इस पार गलवान घाटी में भी यह विचार भारतीय सैनिकों के लिए प्रेरणा का स्रोत था। हमें यह समझना चाहिए कि हमारे देश में आत्मनिर्भरता का विचार पिछले 75 सालों में सबसे अधिक मजबूत हुआ है। हम कभी दुनिया में हथियारों के सबसे बड़े आयातक थे लेकिन आज हालात बदल गए हैं।