अटल बिहारी वाजपेई के किस्से बताने वाले शक्ति सिन्हा नहीं रहे, सोमवार को हुआ निधन

0
21

पोखरण परमाणु परीक्षण, कारगिल युद्ध समेत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई की शख्सियत के कई अनसुने किस्से ‌ बताने वाले उनके निजी सचिव रहे शक्ति सिन्हा नहीं रहे। पूर्व नौकरशाह और शिक्षाविद शक्ति सिन्हा ने सोमवार को अंतिम सांस ली। शिक्षाविद शक्ति सिन्हा की पहचान एक बौद्धिक व्यक्ति और विद्वान के रूप में थी।

शक्ति सिन्हा नेहरु स्मारक संग्रहालय एवं पुस्तकालय के पूर्व निदेशक भी रहे। उन्होंने 1996 से लेकर 1999 के दौरान भाजपा सरकार के साथ मिलकर काम किया था। बाद में उन्होंने बाजपेई, द इयर्स दैट चेंज्ड इंडिया शीर्षक से एक संस्मरण भी लिखा।

कारगिल युद्ध के बारे में बात करते हुए सिन्हा बताते थे कि लोग नहीं जानते कि साल 1998 में वाजपेई के लिए सरकार बनाना और फिर उसे चलाना कितना मुश्किल था। उन्होंने बताया था कि इसके बावजूद अटल बिहारी बाजपेई ने परमाणु परीक्षण का फैसला लिया। जब कारगिल का युद्ध हुआ तो उन्होंने बड़े ही सही तरीके से भारत के हितों की रक्षा की।

कारगिल युद्ध का किस्सा सुनाते हुए सिन्हा ने एक इंटरव्यू में बताया था कि कारगिल युद्ध के समय अटल बिहारी वाजपेई पर काफी दबाव था। कहा जा रहा था कि दोनों नियर पावर देश हैं, गड़बड़ हो सकती है। सीजफायर कराइए। लेकिन अटल बिहारी बाजपेई अरे रहे कि युद्ध विराम तभी होगा जब पाकिस्तान की फौज एलओसी पार करके जाएगी।

बकौल सिन्हा, तब उन्हें लगा था कि बाजपेई के आने से भारत में बदलाव आया है। भारत पहले उतना कॉन्फिडेंट नहीं था। अब भारत बदल गया है और दुनिया उसे अलग नजरिए से देखने लगी थी। सिन्हा कहते थे कि बाजपेई लाहौर गए और उन्होंने मुशर्रफ को आगरा जरूर बुलाया था लेकिन बॉर्डर के हालात देख उन्होंने सेना का मोबिलाइजेशन भी पूरा किया। उन्होंने सेना को खुली छूट दे रखी थी।

शक्ति के शब्दों में, आज के हिसाब से देखें तो उस वक्त परिस्थितियां बिल्कुल ही अलग थी। भारत आज की तुलना में इतना शक्तिशाली देश कभी नहीं था। बाजपेई के पास विकल्प कम थे, वर्तमान पीएम मोदी के पास काफी विकल्प है। वह चाहे पाकिस्तान से इकोनामी की तुलना हो या सेना की बात करें काफी फर्क आ गया है।

आईपीएस अधिकारी शक्ति सिन्हा का सोमवार को निधन हो गया है। हुए 1989 के बैच के आईपीएस अधिकारी थे। कारगिल युद्ध, पोखरण परीक्षण इत्यादि के बारे में कई बातें बताई हैं।