भारत की आजादी का असली नायक कौन?

0
40

शरद कुमार सिन्हा। बात फरवरी 1955 की है। बीबीसी को बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने एक इंटरव्यू दिया था और उसमें अंग्रेजों द्वारा भारत छोड़ने के सही कारणों पर प्रकाश डाला था। इसके तुरंत बाद ही ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री क्लीमेंट रिचर्ड एटली ने भी स्वीकार किया था कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस ही वह महत्वपूर्ण कारण थे जिनकी वजह से अंग्रेजों को सन् 1947 में भारत छोड़ना पड़ा था। उसी समय कई रक्षा और इंटेलीजेंस ने भी तब इस बात को स्वीकार किया था।

भारत को आजाद हुए 70 साल से ज्यादा समय हो चुका है। लेकिन फिर भी ऐसा क्या है कि भारत के लोग नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बारे में अनछुए सच को जानना चाहते हैं? उनसे जुड़ी तमाम रहस्यों और उन लोगों के बयान महत्वपूर्ण हैं जिन्होंने आजादी की लड़ाई को काफी करीब से देखा था। उनके बयान सामने आने से एक बात साफ हो जाती है कि वह व्यक्ति नेता जी ही थे जिन्होंने अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था और भारत को आजादी दिलाई थी।

लेकिन दुर्भाग्यवश राजनीतिक कारणों से भारत की तमाम पिछली सरकारों ने स्वतंत्रता संग्राम में नेताजी की सर्वश्रेष्ठ भूमिका को कभी स्वीकार नहीं किया। लेकिन वास्तविकता यह है कि सन् 1939 में शुरू हुए द्वितीय विश्व युद्ध के बाद कोई स्वतंत्रता संग्राम हुआ ही नहीं। एक तरफ जहां सुभाष चंद्र बोस चाहते थे कि कांग्रेस पार्टी अंग्रेजों को 6 महीने के अंदर भारत छोड़ने का अल्टीमेटम दे। लेकिन महात्मा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस पार्टी ने अंग्रेजों की गोरी हुकुमत पर दबाव बढ़ाने के लिए कुछ भी नहीं किया।

जब कांग्रेस पार्टी ने सुभाष चंद्र बोस निकाल दिया तो उसके बाद नेताजी ने भारत छोड़ दिया और जापान जाकर आजाद हिंद फौज जैसी विशाल सेना का गठन किया। इसमें 60000 सैनिक थे। भारत में कई लोग आजाद हिंद फौज को आज भी एक असंगठित और कम प्रशिक्षित सेना मानते हैं पर वे यह भूल जाते हैं कि इस काम के लिए नेताजी के पास बहुत कम समय था।

अपने गठन के बाद आजाद हिंद फौज ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध के मैदान में जब मोर्चा खोला तो उसी समय महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन की भी शुरूआत की। सुभाष चंद्र बोस द्वारा 1939 में प्रस्तावित आंदोलन जैसा ही गांधी के द्वारा सन् 1942 में शुरू किया गया यह आंदोलन था। यह आंदोलन शुरू तो सही समय पर हुआ था लेकिन दुर्भाग्यवश 3 हप्तों के अंदर ही इसे दबा दिया गया और 1 महीने के अंदर तो यह आंदोलन पूरी तरह खत्म हो गया। इसलिए यह कहना कहीं से भी उचित नहीं लगता कि भारत छोड़ो आंदोलन से देश को आजादी मिली। फिर ऐसा क्या था जिसने भारत को आजादी दिलाई?

इसका सही और स्टीक जवाब मिलता है बाबा साहेब अंबेडकर द्वारा बीबीसी पत्रकार फ्रांसिस वाट्सन को दिए इंटरव्यू में। उन्होंने इंटरव्यू में कहा था, “मैं नहीं जानता कि अचानक एटली जी को क्या हुआ कि उन्होंने अचानक ही भारत को आजादी दे दी। यह रहस्य वह निश्चित ही अपनी जीवनी में सबके सामने लाएंगे, इससे ज्यादा कुछ उम्मीद नहीं की जा सकती। फिर भी लेबर पार्टी द्वारा लिए गए इस निर्णय की वजह सिर्फ यही हो सकती है कि सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व वाली आजाद हिंद सेना ने अंग्रेजों का यह भ्रम तोड़ दिया कि चाहे भारत में कुछ भी हो जाए, चाहे इस देश के नेता कुछ भी कर लें वे सैनिकों की वफादारी कभी नहीं तोड़ सकते। यह अंग्रेजी हुकुमत को एक बहुत बड़ा झटका था जिसके दम पर वह कई सालों से भारत पर राज कर रहे थे। इस घटना ने उनको झकझोर कर रख दिया जब उन्होनें पाया कि सैनिक भी बगावत कर सकते हैं।”

अगस्त 1956 में बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर के निधन के दो महीने के अंदर ही क्लीमेंट एटली ने कोलकाता गर्वनर हाउस पर आयोजित एक डिनर में शामिल हुए। वहां उन्होंने तत्कालीन कोलकाता उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस पी बी चक्रवर्ती के सामने इस बात को स्वीकार किया था। जस्टिस चक्रवर्ती ने जब एटली से पूछा था कि गांधी जी के भारत छोड़ो आंदोलन के कई वर्षों के बाद ऐसी क्या परिस्थितियां आईं कि 1947 में आपलोगों को भारत छोड़ना पड़ा?

जवाब बड़ा ही सीधा है और इसे आसानी से समझा जा सकता है। प्रश्न के जवाब में एटली ने कहा कि भारत की थलसेना और नौसेना में अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ चल रही विद्रोह की भावना मुख्य कारण थी जिसे सुभाष चंद्र बोस के सैन्य कार्यकलापों ने जन्म दिया था। डिनर खत्म होने के बाद जब जस्टिस चक्रवर्ती ने एटली से पूछा कि ब्रिटिश सरकार के भारत छोड़ने के निर्णय में गांधी का क्या प्रभाव था तो एटली ने अपने होठों को सिकोड़ते हुए कहा “बहुत ही कम”।

नवम्बर 1945 में भारत के तत्कालीन वायसराय वेवेल को हाथ से लिखा एक पत्र भी मिला था। पत्र में लिखा था कि अगर एक भी आजाद हिंद फौज का सैनिक मारा गया तो जवाबी कार्यवाही में अंग्रेजी सेना भी मारे जाएंगे। आज के समय में भले ही यह घटना छोटी लग रही हो लेकिन उस वक्त सरकार को इस बात का एहसास हो गया था कि हवा किस दिशा में बह रही है। ब्रिटिश सरकार को लगने लगा था कि आजाद हिंद फौज में बढ़ती हुई लोगों की सहानुभूति और भारतीय सेना की विद्रोही भावने में किसी आक्रमण को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। इसके बाद अचानक ही ब्रिटिश सरकार ने भारत को आजादी देने का फैसला कर लिया।

यह लेखक के निजी विचार हैं।