बांग्लादेश में नहीं थम रहे हैं हिंदुओं पर हमले, कभी 22 फीसदी हिंदू अब रह गए हैं 6 फीसदी

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बांग्लादेश में हिंदू समुदाय की स्थिति

भारत की आजादी की लड़ाई का केंद्र बिंदु रहा अविभाजित बंगाल अब बंटकर बांग्लादेश और पश्चिम बंगाल हो गया है। बड़ी संख्या में हिंदू आबादी का क्षेत्र रहा यह इलाका आजादी के बाद बांग्लादेश में मुस्लिम बहुल होते ही हिंदुओं के लिए नर्क बन गया। यहां लगातार हिंदुओं के साथ मजहबी बर्बरता हो रही है।

बांग्लादेश में कट्टरपंथी मुस्लिम समुदाय द्वारा हिंदू लड़कियों का सामूहिक दुष्कर्म, घरों से उठाकर जबरदस्ती शादी, पढ़ाई लिखाई से रोकना, मंदिरों पर हमले, मूर्तियों को तोड़ा जाना और हिंदुओं को धर्म परिवर्तन के लिए दबाव बनाकर या तो मौत के घाट उतारना या इस्लाम स्वीकार करने के लिए मजबूर करना, वहां की नियमित व्यथा बन गई है।

बांग्लादेश में पहले भी कई बार हिंदुओं को प्रताड़ित किया जा चुका है। ताजा घटना सात अगस्त की है। बांग्लादेश में खुलना जिले के रूपशा के शियाली गांव में ”स्वघोषित” जिहादी मुस्लिम समुदाय ने अल्पसंख्यक हिंदुओं के घरों पर हमला किया। न केवल घरों पर बल्कि व्यावसायिक प्रतिष्ठानों और मंदिरों पर भी हमला किया गया।

इस हमले से हिंदू दहशत में हैं। बांग्लादेश के हिंदू महागठबंधन के प्रवक्ता पलाश कांति दे के अनुसार स्वतंत्रता के बाद से बांग्लादेश में हिंदू, बौद्ध और ईसाई अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न के खिलाफ कोई मुकदमा नहीं चला है। अगर ऐसा ही होता रहा तो बांग्लादेश कुछ सालों में अल्पसंख्यक विहीन हो जाएगा।

हिंदू की मौत के बाद अंतिम संस्कार में हरि नाम जाप के खिलाफ हुए हमले

घटना की शुरुआत सात अगस्त की शाम को हुई। गांव शियाली निवासी एक व्यक्ति का शव लेकर लोग श्मशान घाट जा रहे थे। वे हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार हरिनाम का जाप करते हुए श्मशान जा रहे थे। जब वे शियाली गांव की मस्जिद के करीब पहुंचे तो इमाम ने मस्जिद से निकल कर हरिनाम का जाप बंद करने को कहा। इमाम के मुताबिक, हिंदुओं ने हरिनाम का जाप बंद कर दिया। उस समय तक सब ठीक था।

बताया गया है कि अगले दिन आठ अगस्त की शाम को इमाम के कहने पर 200 से अधिक चरमपंथी जिहादी मुसलमानों ने शियाली गांव में चार मंदिरों में तोड़फोड़ की और छह दुकानों और कई घरों पर हमला किया। दुकान से कीमती सामान, घर से सोना और नकदी लूट ली। महिलाओं के साथ भी अभद्र व्यवहार किया गया।

पुलिस के मुताबिक, हमले के सिलसिले में कई लोगों को गिरफ्तार किया गया है। हालांकि पुलिस ने यह खुलासा नहीं किया कि किसे गिरफ्तार किया गया है। ऐसे में पुलिस की भूमिका पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। रूपशा पुलिस थाने के कार्यवाहक पुलिस प्रमुख सरदार मुशर्रफ हुसैन ने कहा, “इलाके में स्थिति शांत है। एक गलतफहमी हुई थी।” रूपशा उपजिला के कार्यकारी अधिकारी ने कहा कि इस मुद्दे को उसी दिन (7 अगस्त) सुलझा लिया गया था और इसका आठ अगस्त के हमले से कोई लेना-देना नहीं था। पुलिस चाहे कुछ भी कहे, यह पहली बार नहीं है जब बांग्लादेश के विभिन्न हिस्सों में हिंदुओं पर अत्याचार किया गया है।

बांग्लादेश को हिंदू रहित करने की योजना

बांग्लादेश हिंदू महाजोत के प्रवक्ता पलाश कांति दे बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार से बेहद खफा हैं। उनके अनुसार आजादी के बाद से बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं, बौद्धों और ईसाइयों के उत्पीड़न के लिए कोई मुकदमा नहीं चला है। उन्होंने कहा कि हिंदुओं, मुसलमानों, बौद्धों और ईसाइयों के खून के बदले बांग्लादेश नामक एक स्वतंत्र राष्ट्र का जन्म हुआ, लेकिन आज भी हम अपने ही देश में प्रवासी हैं। आजादी के समय बांग्लादेश में 22 फीसदी हिंदू थे, अब यह संख्या घटकर साढ़े छह फीसदी रह गई है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो कुछ सालों में बांग्लादेश में अल्पसंख्यक शून्य हो जाएंगे।

उन्होंने कहा कि बांग्लादेश के हर गांव में हर दिन हिंदुओं को प्रताड़ित किया जा रहा है। अभी तक किसी मामले की सुनवाई नहीं हुई है। बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लगभग एक करोड़ लोगों ने भारत में शरण ली, जिनमें से लगभग 98 लाख हिंदू थे। दुनिया के शांतिप्रिय लोगों ने बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम का समर्थन किया था। लगभग 30 लाख लोगों ने अपनी जान गंवाई, जिनमें से 28 लाख हिंदू थे।

हिंदुओं के साथ बर्बरता की खबर नहीं दिखाता है मीडिया

पूरी दुनिया में न्याय के लिए आवाज उठाने की वजह से सम्मानित मीडिया जगत भी बांग्लादेश में हिंदुओं पर बर्बरता के खिलाफ आवाज नहीं उठाता है। पलाश ने बांग्लादेश में मीडिया पर आरोप लगाते हुए कहा कि हिंदुओं पर अत्याचार की 90 प्रतिशत घटनाओं को बांग्लादेश में मीडिया द्वारा कवर नहीं किया जाता है। खुलना के रूपशा में हिंदुओं पर इतना बड़ा हमला हुआ था लेकिन केवल एक या दो मीडिया हाउस ने इसे प्रसारित किया है। हिंदुओं को अपने घर कम कीमतों पर बेचने या भारत भाग जाने के लिए मजबूर किया जाता है।

पलाश के अनुसार बांग्लादेश में न केवल हिंदू, बल्कि उत्पीड़ित बौद्ध समुदाय के लोग भी हैं। उन्होंने कहा कि पहले बांग्लादेश के दक्षिणी हिस्से में बौद्ध समुदाय था लेकिन अब वे म्यांमार चले गए हैं। रंगामाटी और बांग्लादेश के अन्य हिस्सों में सभी बौद्धों को भारत या म्यांमार जाने के लिए मजबूर किया जा रहा है।